पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – सकारात्मकता, शुभ-संकल्प, सत्संग, सन्त-सन्निधि, सत्य-अन्वेषण की तत्परता और सकल रूपान्तरण के निमित्त सहज साधन हैं…! संकल्प की पवित्रता से सकारात्मकता आती है। सकाराकता अपने आपमें सफलता, संतोष और संयम लेकर आती है। सकारात्मकता का मतलब है – आप बहुत आशावादी हैं। आशावादिता का अर्थ यह है कि आप में निराशा नहीं है। सकारात्मकता तीन चीजें साथ लेकर चलती हैं। पहली – नव सृजन यानी नूतनता या अभिनवता। आपको हर चीज नई करनी है। दूसरी चीज है – पुरातन। इससे आपको सीखना है। पुरातन यानी भूतकाल आपका शिक्षक बने और भविष्य के प्रति आप आशावादिता रखें। अब तीसरी चीज है – वर्तमान। वर्तमान में यदि कहीं कठिनाई, दुविधा है या कोई चुनौती अनुभव कर रहे हैं तो इसका अर्थ है कि वो चुनौती आपकी सक्षमता को जगाने के लिए है। आप और अधिक योग्य बनें, पोटेंशियल बनें अथवा अपने सामर्थ्य को जगाएं। जिनमें हम देखते हैं कि सकारात्मकता खो गई है तो इसका अर्थ यह हुआ कि वे वर्तमान की प्रति सजग नहीं हैं और भविष्य के प्रति आशावादी नहीं हैं। आशावादिता एक चीज साथ लेकर चलती है जिसका नाम है – आत्मविश्वास। सकारात्मक व्यक्ति वही है जो आत्मविश्वास रखता है। और, आत्मविश्वासी व्यक्ति ही सफलता की ओर बढ़ता है। आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है। सफलता वहां है जहां स्वयं के प्रति विश्वास है। और, इसका मूल है सकारात्मकता..।
Related Posts
Comments are closed.