पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव’ जी ने कहा – आंतरिक जीवन ही महानता का सच्चा मार्गदर्शक है। शांत हो जाएं। मौन में सत्य प्रकाशित होता है। अपने आपको स्थिर करें, अपनी अन्तरात्मा की आवाज सुनें वही ईश्वर की आवाज है..! ईश्वर को जो किसी विषय या वस्तु की भांति खोजते हैं, वो ना-समझ हैं। वह वस्तु नही है। वह तो आलोक, आनंद और आत्मा की चरम अनुभूति का नाम है। वह व्यक्ति भी नहीं है कि उसे कहीं बाहर पाया जा सके। वह तो स्वयं की चेतना का ही आध्यात्मिक परिष्कार है। संसार में प्राकृतिक शक्तियों का खेल हो रहा है। पृथ्वी, चंद्र आदि ग्रहों की गति खेल या नृत्य के समान है। वस्तुतः मनुष्य जन्म लेकर अभिनय करने के लिए इस संसार रूपी रंगमंच पर आता है और मृत्यु के साथ अभिनय पूरा हो जाता है। अतः उस साक्षी चैतन्य की अनुभूति हो जाने पर जीवन का नाटक सार्थक हो जाता है…।
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