पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा -आत्म-संयम, सत-संकल्प और सत्य-निष्ठा व्यक्तित्व में असाधारण सामर्थ्य और भगवदीय प्रभाव उत्पन्न करती है, अतः आध्यात्मिक जीवन ही श्रेयस्कर है..! आत्मसंयम से ही जीवन लक्ष्य की सफलता प्राप्त होती है। आत्म-संयमी होना किसी भी श्रेष्ठ पुरुष का प्रथम लक्षण होता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और भय को दूर करने के लिये आपको आत्मसंयम को बढ़ाना होगा। अपने मनोभाव, चेष्टाओं पर अपना नियंत्रण रखना, बुराइयों को छोड़कर जीवन में अच्छाइयों को महत्व देना आत्मसंयम है। आत्मसंयम की उपयोगिता को किसी भी सूरत में और किसी भी काल में कम नहीं आंका जा सकता है। हाँ यह भी सच है कि प्रारंभ में आत्मसंयम का मार्ग थोड़ा कठिन लगता है। यह कुछ ऐसा है, जैसा कि आंवला खाते समय पहले उसका स्वाद बहुत खट्टा लगता है लेकिन खाने के बाद पानी पीने पर यह मीठा लगता है और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। इसी तरह इंद्रिय विषयों का संयम शुरुआत में कठिन लगता है लेकिन इंद्रियों का संयम करने वाला हमेशा सुखी रहता है…!
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