पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – अपनी निजता के बोध का फलादेश है – अनन्तता और अतुल्य सामर्थ्य का अनुभव। अतः आत्माभिमुखी बनें…! पानी का एक बुलबुला सागर से दूर होकर अत्यंत असहाय, अकेला और अकिंचन है। उस क्षणभंगुर बुलबुले से छोटा और कौन हो सकता है? परन्तु, वही बुलबुला जब सागर में मिल जाता है तो एक विकराल, विराट और प्रचंड रूप धारण कर लेता है, वैसे ही मनुष्य जितना परमात्मा से समीप है, उतना ही महान है। जितना वह परमात्मा से दूर है, उतना ही छोटा है। जितने हम परमात्मा से समीप हैं, उसी अनुपात में प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमारा सहयोग करने को बाध्य है। जितना हम परमात्मा से दूर जायेंगे प्रकृति की प्रत्येक शक्ति उसी अनुपात में हम से विपरीत जाने को बाध्य होगी…।
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