पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – अपनी निजता के बोध का फलादेश है – अनन्तता और अतुल्य सामर्थ्य का अनुभव। अतः आत्माभिमुखी बनें…! पानी का एक बुलबुला सागर से दूर होकर अत्यंत असहाय, अकेला और अकिंचन है। उस क्षणभंगुर बुलबुले से छोटा और कौन हो सकता है? परन्तु, वही बुलबुला जब सागर में मिल जाता है तो एक विकराल, विराट और प्रचंड रूप धारण कर लेता है, वैसे ही मनुष्य जितना परमात्मा से समीप है, उतना ही महान है। जितना वह परमात्मा से दूर है, उतना ही छोटा है। जितने हम परमात्मा से समीप हैं, उसी अनुपात में प्रकृति की प्रत्येक शक्ति हमारा सहयोग करने को बाध्य है। जितना हम परमात्मा से दूर जायेंगे प्रकृति की प्रत्येक शक्ति उसी अनुपात में हम से विपरीत जाने को बाध्य होगी…।
Related Posts
पूज्य “आचार्यश्री” जी कहा करते हैं कि अपनी इन्द्रियों पर संयम रखना भी आत्मभिमुखी कार्य है। नैतिकता का मानदंड है – संयम। जहाँ-जहाँ संयम है वहां-वहां नैतिकता है। श्रुति भगवती कहती है – “नायमात्माबलहीनेनलभ्यः”| अर्थात्, बलहीन को परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती और यह बल उसी को प्राप्त होता है जो जितेन्द्रिय है और जिसने अपनी इन्द्रियों के साथ-साथ मन पर भी नियंत्रण पाया है। हमारी आत्मा हम स्वयं हैं और यह संसार एक दर्पण है। दर्पण को कितना भी सजा लें, यदि हमारी आत्मा कलुषित है तो प्रतिबिंब भी कलुषित ही होगा। उज्जवल ही करना है तो बिम्ब को करें। शृंगार स्वयं अपनी आत्मा का करें, फिर उसका प्रतिबिंब यह संसार भी अतिसुन्दर होगा…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – जीवन में हमेशा अच्छे लोगों का संग करें। हम जैसे लोगों के संपर्क में आते हैं वैसे ही लोगों की तरह हो जाते हैं। यदि हमारे आसपास सकारात्मक, उर्जावान, आत्मविश्वासी व्यक्ति होंगे तो हम भी उनके जैसा ही बनने का प्रयास करें, क्योंकि सामने वाले से हमें सदा प्रेरणा मिलती रहेगी, हमारे अंदर उत्साह जगाता रहेगा। इसलिए वरिष्ठ एवं अनुभवी लोगों के साथ बैठें, उनके विचारों को सुनें तथा उन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करें। किस तरह उन्होंने जीवन में संघर्ष किया व मुसीबतों का सामना किया, उन बातों से सबक लें। जिस तरह उनके बुरे दिन हमेशा नहीं रहे, उसी तरह आपके भी बुरे दिन हमेशा नहीं रहेंगे। इस बात को समझ लें और अपनी नकारात्मक सोच को सकारात्मक बनाकर, आत्मविश्वास द्वारा भविष्य को और उज्जवल बनाएं…।
पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – सत्संग-सद्विचार ही जीवन के निर्माता हैं। सत्संग हमें तारता है और कुसंग डूबोता है। जन्मों-जन्म के पाप-ताप को मिटाता है – सत्संग। जीवन के दोषों को दूर करने के लिए सत्संग किया करें। सत्संग का अर्थ है – अच्छे लोगों का संग। कहा भी गया है कि जैसा होगा संग वैसा ही चढ़ेगा रंग। सत्संग मानसिक समस्याओं की चिकित्सा है। जब मन में काम, क्रोध रूपी वासनाओं की आंधी उठे और ज्ञान रूपी दीपक बुझने लगे, तो ऐसे में सत्संग औषधि का कार्य करता है। शिवजी पार्वती जी को सत्संग सुनाते हैं और स्वयं अगस्त्य ऋषि के आश्रम में सत्संग सुनने के लिए जाते हैं। सत्संग पापी को पुण्यात्मा बना देता है, पुण्यात्मा को धर्मात्मा बना देता है, धर्मात्मा को महात्मा बना देता है और महात्मा को परमात्मा बना देता है…।
Comments are closed.