पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – शब्द ईश्वरीय सत्ता है। अभिव्यक्ति में सत्यता-मधुरता, लालित्य-पावित्रय और आदर भावना रहे, यह एक ऐसा आध्यात्मिक साधन है, जो सर्वथा कल्याणकारक है…! “शब्द” को ब्रह्मा कहा गया है क्योंकि ईश्वर और जीव को एक श्रृंखला में बाँधने का काम शब्द के द्वारा ही होता है। सृष्टि की उत्पत्ति का प्रारम्भ भी शब्द से हुआ है। पंचतत्वों में सबसे पहले आकाश बना, आकाश की तन्मात्रा शब्द है। अन्य समस्त पदार्थों की भाँति शब्द भी दो प्रकार के हैं – सूक्ष्म और स्थूल। सूक्ष्म शब्द को विचार कहते हैं और स्थूल शब्द को नाद। ब्रह्मलोक से हमारे लिए ईश्वरीय शब्द प्रवाह सदैव प्रवाहित होता है। ईश्वर हमारे साथ वार्तालाप करना चाहता है, पर हममें से बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो उसे सुनना चाहते हैं या सुनने की इच्छा करते हैं। हमारा अन्तःकरण एक रेडियो है, जिसकी ओर यदि अभिमुख हुआ जाये, अपनी-वृत्तियों को अन्तर्मुख बनाकर आत्मा में प्रस्फुटित होने वाली दिव्य विचार-लहरियों को सुना जाये तो ईश्वरीय वाणी हमें प्रत्यक्ष में सुनाई पड़ सकती हैं। इसी को आकाशवाणी कहते हैं। हमें क्या करना चाहिए, क्या नहीं? हमारे लिए क्या उचित है, क्या अनुचित? इसका प्रत्यक्ष सन्देश ईश्वर की ओर से प्राप्त होता है। अन्तःकरण की पुकार, आत्मा का आदेश, ईश्वरीय सन्देश, आकाशवाणी विज्ञान आदि नामों से इसी विचारधारा को पुकारते हैं। अनहद नाद एक बिना तार की दैवीय सन्देश प्रणाली है। साधक इसे जानकर सब कुछ जान सकता है। अपनी आत्मा के यन्त्र को स्वच्छ करके जो इस दिव्य सन्देश को सुनने में सफलता प्राप्त कर लेते हैं, वे आत्मदर्शी एवं ईश्वर-परायण कहलाते हैं…।
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