पश्चिम में संस्कृत को अपनाने की होड़, लेकिन भारत में उपेक्षा क्यों?

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,27 मार्च।
संस्कृत, जिसे भारतीय संस्कृति और प्राचीन ज्ञान का आधार माना जाता है, आज पश्चिमी देशों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों में विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में संस्कृत पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। वहीं, भारत, जो इस भाषा की जन्मभूमि है, में संस्कृत को अभी भी उपेक्षित किया जाता रहा है। यह विरोधाभास भारतीय शिक्षा नीति और समाज की मानसिकता पर सवाल खड़ा करता है।

संस्कृत को पश्चिमी देशों में सिर्फ एक प्राचीन भाषा के रूप में नहीं, बल्कि विज्ञान, दर्शन, योग, आयुर्वेद और गणित से जुड़े अनमोल ज्ञान के स्रोत के रूप में देखा जा रहा है।

  • विश्वविद्यालयों में संस्कृत अध्ययन: हार्वर्ड, ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज और स्टैनफोर्ड जैसी शीर्ष संस्थाओं में संस्कृत अध्ययन के लिए विशेष विभाग और पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।

  • आधुनिक विज्ञान में उपयोग: नासा और अन्य शोध संस्थान संस्कृत भाषा की गणितीय संरचना और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में इसके संभावित उपयोग पर अध्ययन कर रहे हैं।

  • योग और आयुर्वेद के बढ़ते प्रभाव: पश्चिमी देशों में योग और आयुर्वेद की लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही संस्कृत के मूल ग्रंथों का अध्ययन भी बढ़ रहा है।

  • संस्कृत साहित्य में रुचि: कालिदास, पाणिनि और पतंजलि के ग्रंथों का अध्ययन कर पश्चिमी विद्वान प्राचीन भारतीय दर्शन को समझने की कोशिश कर रहे हैं।

भारत में, जहां संस्कृत हजारों वर्षों से ज्ञान और दर्शन की भाषा रही है, उसे अक्सर “मृत भाषा” कहकर नजरअंदाज किया जाता है।

  • शिक्षा प्रणाली में उपेक्षा: अधिकांश स्कूलों में संस्कृत को एक वैकल्पिक भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है, लेकिन इसे मुख्यधारा की शिक्षा में मजबूत स्थान नहीं मिल पाया।

  • राजनीतिक और वैचारिक मतभेद: संस्कृत को एक धर्म विशेष से जोड़कर देखा जाता है, जिसके कारण इसे आम जनता और शिक्षा नीति में वह स्थान नहीं मिला, जिसका यह हकदार है।

  • युवाओं में रुचि की कमी: आधुनिक पीढ़ी संस्कृत को पुरानी और गैर-प्रासंगिक भाषा मानती है, जबकि अंग्रेजी और अन्य विदेशी भाषाओं को प्राथमिकता दी जाती है।

  • अधूरी सरकारी पहलें: भारत सरकार समय-समय पर संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं बनाती रही है, लेकिन वे प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो सकीं।

भारत में संस्कृत को पुनर्जीवित करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है:

  1. शिक्षा प्रणाली में अनिवार्यता: संस्कृत को स्कूल और विश्वविद्यालय स्तर पर एक प्रमुख विषय के रूप में पढ़ाने की आवश्यकता है।

  2. तकनीक और विज्ञान में उपयोग: संस्कृत के गणितीय और वैज्ञानिक पक्ष पर शोध को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

  3. आधुनिक संदर्भ में प्रचार: संस्कृत को सिर्फ धार्मिक भाषा के रूप में नहीं, बल्कि ज्ञान, दर्शन और विज्ञान की भाषा के रूप में प्रस्तुत किया जाए।

  4. युवाओं को प्रेरित करना: संस्कृत साहित्य, नाटकों, फिल्मों और डिजिटल मीडिया के माध्यम से इसे युवाओं के बीच लोकप्रिय बनाया जा सकता है।

संस्कृत केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक और तार्किक भाषा भी है, जिसका उपयोग भविष्य में कई क्षेत्रों में किया जा सकता है। पश्चिमी देशों ने इसकी महत्ता को समझ लिया है, लेकिन भारत में इसे अभी भी पर्याप्त महत्व नहीं मिल पाया है। यह समय की मांग है कि भारत भी अपनी इस प्राचीन भाषा को पुनर्जीवित करे और इसे आधुनिक शिक्षा और विज्ञान का हिस्सा बनाए, ताकि हम अपनी ही जड़ों से कटने के बजाय उन्हें और मजबूत कर सकें।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!


Comments are closed.