‘पकड़ौआ सीएम’ का बयान और उसका राजनीतिक असर:
तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को ‘पकड़ौआ सीएम’ बताते हुए यह आरोप लगाया था कि मुख्यमंत्री का पद नीतीश कुमार को अचानक और अनचाहे तरीके से सौंपा गया था। उनका यह बयान 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद सत्ता के समीकरणों को लेकर था, जब महागठबंधन की सरकार बनने के बाद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद सौंपा गया था। तेजस्वी यादव का कहना था कि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के लिए राजद की ओर से दबाव नहीं था और यह एक तरह से उनका ‘पकड़ौआ’ पद था।
तेजस्वी के इस बयान से जेडीयू ने खासा नाराजगी जाहिर की और इसे राजद की राजनीतिक कमजोरी का परिणाम बताया। जेडीयू नेता अशोक चौधरी ने कहा कि तेजस्वी यादव के पास अब कोई ठोस मुद्दा नहीं बचा है, इसलिए वे इस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि तेजस्वी और उनकी पार्टी को यह समझना चाहिए कि व्यक्तिगत आरोपों से चुनाव नहीं जीते जा सकते, और ऐसे बयानों से केवल राजनीति में तल्खी ही बढ़ेगी।
जेडीयू की प्रतिक्रिया और तेजस्वी पर तंज:
जेडीयू के नेताओं ने तेजस्वी यादव के बयान को पूरी तरह से नकारा किया और इसे एक बेबुनियाद आरोप बताया। अशोक चौधरी ने कहा, “राजद और तेजस्वी के पास अब कोई ठोस मुद्दा नहीं है, जिसके आधार पर वे जनता के बीच जा सकें। वे सिर्फ भ्रम फैलाने के लिए इस तरह के बयान दे रहे हैं, जो राजनीति में एक नकारात्मक माहौल पैदा करते हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में विकास और जनकल्याण की दिशा में नीतीश कुमार ने जो कार्य किए हैं, वह तेजस्वी जैसे आरोपों से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।
चौधरी ने यह भी कहा कि बिहार की जनता अब समझ चुकी है कि कौन उनके हित में काम कर रहा है और कौन सिर्फ अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए बयानबाजी कर रहा है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में जो विकास हुआ है, वह किसी भी आरोप से कम नहीं हो सकता।
क्या है बिहार की राजनीति का आगामी दिशा?
बिहार की राजनीति में यह ताजातरीन विवाद यह दर्शाता है कि राज्य में सत्ताधारी गठबंधन और विपक्षी दलों के बीच की प्रतिस्पर्धा तेज हो चुकी है। जहां एक तरफ नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार विकास की दिशा में काम करने का दावा कर रही है, वहीं विपक्षी दल राजद ने सत्ता में बने रहने के लिए लगातार आलोचना और आरोप-प्रत्यारोप का सहारा लिया है।
तेजस्वी यादव का यह बयान राजनीति में ताजगी लाने के बजाय केवल विवादों को बढ़ा सकता है, और यह बिहार की राजनीति को और भी तिक्त बना सकता है। जेडीयू का यह कहना सही प्रतीत होता है कि चुनावी मुद्दों पर बहस होनी चाहिए, न कि व्यक्तिगत आरोपों और झगड़ों पर। अगर बिहार के लोग इन आरोपों से ऊपर उठकर विकास और जनहित के मुद्दों पर बात करें, तो ही राज्य में असली बदलाव आ सकता है।
निष्कर्ष:
बिहार की सियासत में चल रहे इस विवाद से यह साफ होता है कि वर्तमान में विपक्ष के पास कोई ठोस मुद्दा नहीं बचा है, और इसलिए वे ऐसे विवादित बयानों का सहारा ले रहे हैं। जेडीयू ने तेजस्वी यादव के ‘पकड़ौआ सीएम’ वाले बयान का विरोध करते हुए इसे एक कमजोर राजनीतिक रणनीति बताया। अब यह देखना होगा कि बिहार की जनता आगामी चुनावों में किसे अपने विकास का सबसे बेहतर मार्गदर्शक मानती है।