दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज
की दीक्षा के 50 वर्ष का महोत्सव आरम्भ
• प्रमुख कार्यक्रम 28,29 और 30 जून 2017 को छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में
• पचासवें मुनि दीक्षा दिवस के उपलक्ष्य पर इस वर्ष को ‘संयम स्वर्ण महोत्सव’ के रूप में मनाया जा रहा है
• तीन दिवसीय आयोजन में देश भर के कई राज नेता भी शिरकत करेंगे
रायपुर: परम पूज्य संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के पचासवें मुनि दीक्षा दिवस के उपलक्ष्य पर ‘संयम स्वर्ण महोत्सव’ का आरम्भ 28, जून 2017 बुधवार से हो रहा है। प्रमुख कार्यक्रम 28, 29 और 30 जून 2017 को छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ (जिला राजनांदगांव) में होंगे जहां आचार्यश्री विराजित है। डोंगरगढ़ में देश-विदेश से करीब एक लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। इस महोत्सव में साल भर मानव कल्याण के अनेक कार्य, सांस्कृतिक एवं धार्मिक कार्यक्रम देश के अनेक गांवों, नगरों में आयोजित किए जाएंगे। आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज ऐसे दिगम्बर जैनाचार्य हैं जो दीक्षा ग्रहण कर आधी शताब्दी से अपनी तपसाधना के साथ-साथ मानव कल्याण के कार्य कर रहे हैं और लाखों करोड़ों लोगों की श्रद्धा के केंद्रबिंदु हैं।
जो श्रद्धालु 28 जून बुधवार को डोंगरगढ़ में होने वाले आयोजनों के साक्षी नहीं बन पायेंगे वे अपने गाँवों और शहरों में इस महोत्सव की तैयारियाँ कर रहे हैं। इस दिन सभी प्रमुख जैन मंदिरों से सुबह प्रभात फेरी निकाली जाएगी एवं आचार्यश्री की विशेष संगीतमय पूजन का आयोजन होगा। नगर-नगर वृक्षारोपण किया जाएगा अस्पतालों/अनाथालयों/वृद्धाश्रमों में फल एवं जरूरत की सामग्री का वितरण, जरूरतमंदों को खाद्यान्न, वस्त्र वितरण आदि का आयोजन किया जाएगा।
28, जून बुधवार को होने वाले कार्यक्रमों की रुपरेखा
बुधवार को डोंगरगढ़ में सुबह 5 बजकर 30 मिनिट पर आचार्य भक्ति के साथ दिन की शुरुआत होगी। उसके बाद में आचार्यश्री का संगीतमय भव्य पूजन, श्रावकों द्वारा संयम ग्रहण, आचार्यश्री के अमृत वचन, आचार्यश्री की आहारचर्या होगी। दोपहर 2 बजे आचार्यश्री का मंच पर आगमन, मंगलाचरण, दीप प्रज्वलन, चित्र अनावरण, मुख्य अतिथि के द्वारा आचार्यश्री को श्रीफल भेंट एवं कार्यक्रम का शुभारम्भ, सर्वहारा वर्ग के महिला-पुरुषों को हथकरधा दान। दोपहर 2 बजकर 45 मिनिट पर प्रतिभास्थली की छात्राओं के द्वारा आचार्य श्री की चेतन-अचेतन कृतियों को वंदन, झांकियों के माध्यम से भव्य मंचन, रेत कलाकार द्वारा जीवंत प्रस्तुति। दोपहर 3 बजकर 20 मिनिट पर मुख्य अतिथि का उद्बोधन, मुनि महाराज के द्वारा गुरु गुणगान। दोपहर 4 बजे आचार्यश्री के अमृत वचन। शाम 5 बजकर 30 मिनिट पर आचार्यभक्ति। शाम 6 बजे भव्य संगीतमय आरती एवं भक्ति। 7 बजे विद्वत प्रवचन और शाम 7 बजकर 30 मिनिट पर प्रतिभास्थली द्वारा “स्वर्णिम भारत की आकर्षक प्रस्तुति”
29, जून गुरूवार को होने वाले कार्यक्रमों की रुपरेखा
सुबह सुबह 5 बजकर 30 मिनिट पर आचार्य भक्ति के साथ दिन की शुरुआत होगी। उसके बाद में आचार्यश्री का संगीतमय भव्य पूजन, आचार्यश्री के अमृत वचन, आचार्यश्री की आहारचर्या। दोपहर 2 बजे आचार्यश्री का मंच पर आगमन, दीप प्रज्वलन, चित्र अनावरण, मुख्य अतिथि के द्वारा आचार्यश्री को श्रीफल भेंट, मुख्य अतिथि के द्वारा उद्बोधन। दोपहर 2 बजकर 30 मिनिट से 4 बजे तक आचार्यश्री ज्ञानसागर महाराज का गुणानुवाद, आचार्यश्री विद्यसागरजी महाराज के व्यक्तित्व और कृतित्व का दर्शन, विभिन्न वक्ताओं के उद्बोधन। दोपहर 4 बजे आचार्यश्री के अमृत वचन। शाम 5 बजकर 30 मिनिट पर आचार्यभक्ति। शाम 6 बजे भव्य संगीतमय आरती एवं भक्ति। 7 बजे विद्वत प्रवचन और शाम 7 बजकर 30 मिनिट पर सांस्कृतिक कार्यक्रम।
30, जून शुक्रवार को होने वाले कार्यक्रमों की रुपरेखा
सुबह 5 बजकर 30 मिनिट पर आचार्य भक्ति के साथ दिन की शुरुआत होगी। उसके बाद में आचार्यश्री का संगीतमय भव्य पूजन, आचार्यश्री के अमृत वचन, आचार्यश्री की आहारचर्या। दोपहर 2 बजे आचार्यश्री का मंच पर आगमन, दीप प्रज्वलन, चित्र अनावरण, मुख्य अतिथि के द्वारा आचार्यश्री को श्रीफल भेंट। दोपहर 2 बजकर 20 मिनिट पर चंद्रगिरि की महिलाओं द्वारा प्रस्तुति। दोपहर 3 बजकर 20 मिनिट पर मुख्य अतिथि का उद्बोधन, मुनि महाराज के द्वारा गुणगान। दोपहर 4 बजे आचार्यश्री के अमृत वचन। शाम 5 बजकर 30 मिनिट पर आचार्यभक्ति। शाम 6 बजे भव्य संगीतमय आरती एवं भक्ति। 7 बजे विद्वत प्रवचन और शाम 7 बजकर 30 मिनिट पर सांस्कृतिक कार्यक्रम।
मानव कल्याण के लिए राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दिया
दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की साधना, तप और समर्पण राष्ट्रीय एकता को भी समर्पित है। आचार्यश्री ने हजारों किलोमीटर नंगे पाँव चलते हुए देश के कई स्थानों की यात्रा की है। जहाँ भी वे पहुंचे है वहां उन्होंने अध्यात्म और विश्वबंधुत्व की गंगा बहाई है। जीवन-मूल्यों को प्रतिस्ठित करने वाले बाल ब्रह्मचारी श्री विद्यासागरजी स्वभाव से सरल और सब जीवों के प्रति मित्रवत व्यवहार के संपोषक हैं, इसी के कारण उनके व्यक्तित्व में विश्व-बन्धुत्व की, मानवता की सौंधी-सुगन्ध विद्यमान है। 28 जून को डोंगरगढ़ में होने वाले आयोजन के लिए देश विदेश से लाखों की संख्या में सभी धर्म और जाती के लोग उपस्थित होंगे। निश्चित तौर पर यह नजारा आकर्षण का केंद्र होगा।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
आचार्यश्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को ‘शरद पूर्णिमा’ के पावन दिन कर्नाटक के बेलगाम जिले के सदलगा ग्राम में हुआ था। 22 वर्ष की उम्र में उन्होंने पिच्छि-कमण्डलु धारण कर संसार की समस्त बाह्य वस्तुओं का परित्याग कर दिया था। और दीक्षा के बाद से ही सदैव पैदल चलते हैं, किसी भी वाहन का इस्तेमान नहीं करते हैं। साधना के इन 49 वर्षों में आचार्यश्री ने हजारों किलोमीटर नंगे पैर चलते हुए महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में अध्यात्म की गंगा बहाई, लाखों लोगों को नशामुक्त किया है और राष्ट्रीय एकता को मजबूती प्रदान की है। जब वे पद विहार करते हैं, गाँव- गाँव मं हर वर्ग के लोगों का ऐसा हुजूम उमड़ पड़ता है और लगता है मानो स्वयं भगवान महावीर स्वामी चल रहे हों। पैरों में छाले पड़ें या फिर काँटे चुभें पर इस महासंत की यात्रा अनवरत जारी रहती है, वे कभी किसी को बताते नहीं कि कब और कहाँ के लिए पद विहार करेंगे। वे सच्चे अर्थों में जन-जन के संत हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी से प्रेरित उनके माता, पिता, दो छोटे भाई अनंतनाथ व शांतिनाथ और दो बहन सुवर्णा और शांता ने भी दीक्षा ली।
आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज लकड़ी के तख़्त पर अल्प समय के लिए ही सोते हैं, कोई बिछौना नहीं, न ही कोई ओढ़ना और रोजाना अलसुबह 2 बजे उठ जाते हैं। वे जैन मुनि आचार संहिता के अनुसार 24 घंटे में केवल एक बार पाणीपात्र में निर्दोष आहार (भोजन) और एक बार ही जल ग्रहण करते हैं, उनके भोजन में हरी सब्जी, दूध, नमक और शक्कर नहीं होते हैं।
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