इस संगोष्ठी में इतिहासकारों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और विद्वानों की प्रतिष्ठित उपस्थिति रही, जिन्होंने दक्षिणापथ की गौरवशाली विरासत पर गहन मंथन किया। यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही ज्ञान, वीरता और सांस्कृतिक उत्कृष्टता का केंद्र रहा है, और इस कार्यक्रम ने इसकी भव्यता को फिर से जीवंत करने का प्रयास किया।
संगोष्ठी का उद्घाटन एक गरिमामयी समारोह के रूप में हुआ, जिसकी अध्यक्षता तेलंगाना के माननीय राज्यपाल श्री जिष्णु देव वर्मा ने की। इस आयोजन की प्रतिष्ठा को और बढ़ाने के लिए आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव, श्री एल.वी. सुब्रह्मण्यम, IAS ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। उद्घाटन भाषण डॉ. शरद हेबळकर द्वारा दिया गया, जिन्होंने दक्षिणापथ की ऐतिहासिक यात्रा को सारगर्भित तरीके से प्रस्तुत किया।
पहले दिन के सत्र में डॉ. बालमुकुंद पांडे, गिरिधर मामिडी, डॉ. अन्नदानम सुब्रह्मण्यम, न्यायमूर्ति भास्कर राव जैसे प्रसिद्ध विद्वानों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। इन प्रस्तुतियों ने दक्षिणापथ की प्राचीन परंपराओं, साहित्य, चिकित्सा, खगोलशास्त्र, कला, गणित और विज्ञान पर प्रकाश डाला।
सत्र के दूसरे चरण में डॉ. अरविंद जामखेडकर, प्रो. माणिक्यांबा, प्रो. सोमसुंदर राव, डॉ. एन.एस. रामचंद्र मूर्ति आदि विद्वानों ने दक्षिण भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक संपदा को रेखांकित किया।
संगोष्ठी के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में तेलंगाना के योद्धा नृत्य ‘पेरिनी नृत्यम’ का अद्भुत प्रदर्शन किया गया, जिसमें युद्ध की उग्रता और शौर्य का जीवंत प्रदर्शन देखने को मिला। इसके अलावा, मुसुनुरी राजवंश पर आधारित एक ऐतिहासिक नाटक मंचित किया गया, जिसमें 14वीं शताब्दी में विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध संघर्ष को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया।
दूसरे दिन विद्वानों ने प्राचीन ग्रंथों, सामाजिक-सांस्कृतिक विकास और ऐतिहासिक संदर्भों पर आधारित शोध प्रस्तुत किए। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. वी. किशन राव, डॉ. राजा रेड्डी, प्रो. नागेंद्र राव ने की।
प्रो. अरविंद जामखेडकर, डॉ. कुसुमा बाई, डॉ. सीमा उपाध्याय, डॉ. पी.वी. राधाकृष्णन सहित अन्य विद्वानों ने दक्षिण भारत के अद्वितीय योगदान को दर्शाया।
17 मार्च को हुए समापन समारोह में ओडिशा के माननीय राज्यपाल डॉ. हरी बाबू कम्भमपति ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। इस अवसर पर भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) के पूर्व अध्यक्ष प्रो. वाई. सुदर्शन राव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय महासचिव श्री हेमंत धिंग मजूमदार और राष्ट्रीय सह-संगठन सचिव श्री संजय कुमार मिश्रा ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए।
तीन दिवसीय इस संगोष्ठी ने दक्षिणापथ की समृद्ध सांस्कृतिक, शैक्षिक और ऐतिहासिक विरासत को उजागर किया। विद्वानों और इतिहासकारों ने अपने शोध पत्रों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि भारत का दक्षिणी भाग प्राचीन काल से ही ज्ञान, विज्ञान और पराक्रम का केंद्र रहा है।
इस आयोजन से एक नई बौद्धिक चेतना उत्पन्न हुई है, जो भविष्य में दक्षिणापथ की ऐतिहासिक संपदा पर और अधिक शोध एवं चर्चा को प्रेरित करेगी। भारत की इस अनमोल धरोहर को संरक्षित करना और इसे विश्वपटल पर पुनः प्रतिष्ठित करना ही इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य रहा।
“गौरवशाली अतीत से प्रेरित होकर, एक उज्ज्वल भविष्य की ओर!”