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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,6 मार्च। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपनी नीतियों और विवादास्पद बयानों के लिए हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। हाल ही में उन्होंने आर्थिक नीतियों को लेकर एक बार फिर से चर्चा छेड़ दी है, खासकर टैरिफ (आयात शुल्क) को लेकर। ट्रम्प का कहना है कि यदि वह दोबारा राष्ट्रपति बने, तो वे चीन, भारत और अन्य देशों से आने वाले उत्पादों पर ऊंचे टैरिफ लगाएंगे। हालांकि, इस ऐलान पर जहां कई देश चिंता जता रहे हैं, वहीं भारत की ओर से अब तक कोई खास हाय-तौबा नहीं मची है। आखिर इसके पीछे की वजह क्या है?
ट्रम्प और उनकी ‘टैरिफ दीवानगी’
ट्रम्प का कार्यकाल (2017-2021) संरक्षणवाद (protectionism) पर आधारित था, जहां उन्होंने “अमेरिका फर्स्ट” नीति अपनाते हुए कई देशों के खिलाफ भारी टैरिफ लगाए थे।
- उन्होंने चीन पर 25% से अधिक आयात शुल्क लगाया, जिससे अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध छिड़ गया।
- भारत को भी जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस (GSP) से बाहर कर दिया, जिससे भारतीय उत्पादों को अमेरिका में मिलने वाली छूट खत्म हो गई।
- उन्होंने स्टील और एल्युमिनियम पर भी टैरिफ बढ़ाए, जिससे भारत जैसे देशों को नुकसान हुआ।
अब जब ट्रम्प 2024 में राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे हैं, तो उन्होंने फिर से टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी है।
भारत क्यों नहीं मचा रहा हाय-तौबा?
1. भारत का आत्मनिर्भर भारत मॉडल
भारत अब “आत्मनिर्भर भारत” अभियान पर तेजी से काम कर रहा है। सरकार ने मेक इन इंडिया, पीएलआई (Production-Linked Incentive) स्कीम जैसी योजनाएं शुरू की हैं, जिससे भारत का उद्योग जगत वैश्विक आयात पर निर्भरता कम कर रहा है। अगर ट्रम्प दोबारा टैरिफ बढ़ाते हैं, तो भारत घरेलू उत्पादन को और तेज कर सकता है।
2. भारत-अमेरिका के मजबूत व्यापारिक रिश्ते
हाल के वर्षों में भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंध काफी मजबूत हुए हैं।
- 2022-23 में भारत-अमेरिका का द्विपक्षीय व्यापार 191 अरब डॉलर तक पहुंच गया।
- भारत अब अमेरिका के लिए चीन का विकल्प बनता जा रहा है, खासकर टेक और फार्मा सेक्टर में।
- माइक्रोन जैसी अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश कर रही हैं, जिससे व्यापारिक संबंध और बेहतर हो रहे हैं।
भारत को भरोसा है कि अगर ट्रम्प राष्ट्रपति बनते हैं, तो भी भारत के साथ व्यापारिक संबंध पूरी तरह से खराब नहीं होंगे।
3. चीन पर फोकस, भारत पर कम असर
ट्रम्प का असली टारगेट चीन है, भारत नहीं।
- 2018-19 में जब ट्रम्प ने टैरिफ बढ़ाए, तब भी उनका मुख्य फोकस चीन ही था।
- अमेरिका चाहता है कि भारत चीन के मुकाबले मजबूत हो, ताकि चीन की वैश्विक वर्चस्व वाली स्थिति कमजोर हो।
- भारत की आईटी और फार्मा इंडस्ट्री अमेरिका के लिए जरूरी है, इसलिए टैरिफ का असर सीमित रहेगा।
4. भारत का निर्यात अब विविध हो चुका है
भारत अब केवल अमेरिका पर निर्भर नहीं है, बल्कि यूरोप, मिडिल ईस्ट और दक्षिण एशिया के साथ भी बड़े स्तर पर व्यापार कर रहा है।
- यूएई और भारत ने फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) साइन किया है।
- रूस-भारत व्यापार तेल और रक्षा सौदों की वजह से बढ़ रहा है।
- यूरोपियन यूनियन के साथ भी भारत ट्रेड डील पर काम कर रहा है।
इसका मतलब यह है कि अगर अमेरिका टैरिफ बढ़ाता भी है, तो भारत के पास अन्य बाजारों में जाने के विकल्प हैं।
5. ट्रम्प प्रशासन में वापसी की अनिश्चितता
ट्रम्प का यह बयान चुनावी रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है।
- अभी यह तय नहीं है कि वे दोबारा राष्ट्रपति बनेंगे या नहीं।
- यदि वे चुनाव जीत भी जाते हैं, तो भी उनकी टैरिफ नीति को अमेरिकी संसद में समर्थन मिलना मुश्किल हो सकता है।
- कई अमेरिकी कंपनियां भारत से आयात करती हैं, इसलिए वे ट्रम्प की टैरिफ नीति का विरोध कर सकती हैं।
निष्कर्ष
ट्रम्प की टैरिफ दीवानगी को भारत फिलहाल बहुत गंभीरता से नहीं ले रहा है, क्योंकि भारत अब ग्लोबल मार्केट में अपनी जगह मजबूत कर चुका है। हालांकि, भारत को सतर्क जरूर रहना होगा और अपने निर्यात बाजारों को और मजबूत बनाना होगा। अगर ट्रम्प दोबारा सत्ता में आते हैं और टैरिफ बढ़ाते हैं, तो भारत के पास पहले से ही तैयार रणनीतियां होंगी, जिससे इसका असर सीमित रहेगा।
ट्रम्प के टैरिफ से भारत हाय-तौबा क्यों नहीं मचा रहा? जवाब साफ है – अब भारत पहले जैसा कमजोर नहीं, बल्कि एक मजबूत वैश्विक खिलाड़ी बन चुका है।
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