कभी देश का सबसे भरोसेमंद न्यूज़ चैनल माने जाने वाला ‘आज तक’ अब बिखराव के दौर से गुजर रहा है। एक समय था जब इसकी टीआरपी नंबर वन थी, लेकिन अब यह चौथे नंबर पहुँच गया है। इस परिवर्तन की कारणें टीआरपी तक ही सीमित नहीं हैं—यह एक बड़े मीडिया ट्रांसफॉर्मेशन की शुरुआत है, जहाँ दर्शकों का भरोसा, पत्रकारों का पलायन और वित्तीय संकट, सब एक साथ सामने आ रहे हैं।
गत कुछ वर्षों में और मुख्य रूप से ‘आज तक’ ने काफी नामचीन चेहरों को गंवाया है जैसे —राहुल कंवल और सुधीर चौधरी। राहुल कंवल, जो 22 वर्षों से संस्था से जुड़े थे, अब इसे अलविदा कह चुके हैं। उन्हें एक समय ‘आज तक’ का चेहरा माना जाता था। उनका राजनीतिक और पत्रकारिता से जुड़ाव गहरा रहा है—उनके पिता एक समय मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
सुधीर चौधरी की विदाई भी कम सनसनीखेज नहीं रही। पहले यह खबर चली कि वे ₹15 करोड़ के पैकेज में एक हफ्ते में पांच दिन शो करने जा रहे हैं। लेकिन बाद में साफ हुआ कि यह मात्र एक घंटे का शो होगा, जो कि एक प्राइवेट कंपनी प्रोड्यूस करेगी। सुधीर का करियर हमेशा विवादों के साथ जुड़ा रहा—कभी झूठी रिपोर्टिंग, कभी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का आरोप, और कभी 100 करोड़ की रिश्वत कांड जैसा जुड़ावा। उनका करियर आपको बताता है कि कैसे मीडिया का एक हिस्सा सत्ता के करीब आ करके विश्वसनीयता खो बैठा।
मीडिया संस्थानों के इस विखराव की शुरुआत कर्मचारियों के छोड़ने से भी नहीं हुई। आर्थिक संकट भी बड़ी कारण हैं। 2024 की तीसरी तिमाही में इंडिया टुडे ग्रुप की रेवेन्यू ₹311 करोड़ से कम होकर ₹306 करोड़ रह गई और प्रॉफिट ₹51 करोड़ से कम होकर मात्र ₹8 करोड़ रह गया। यह गिरावट एक बड़े संकट की ओर इशारा करती है। इतना ही नहीं, मिड-लेवल के कर्मचारी, जो 7–8 साल से काम कर रहे थे, उनकी सैलरी में 10–20% की कटौती हुई है। , चैनल अब कंटेंट क्रिएटर्स पर निर्भर हो रहा है। कल्ली पुरी—इंडिया टुडे की ग्रुप डायरेक्टर—ने एक पत्र में स्पष्ट किया कि आने वाले समय में चैनल की दिशा कंटेंट क्रिएटर्स तय करेंगे। यह बदलाव यह बताता है कि संस्थागत पत्रकारिता की जगह अब सोशल मीडिया जनित पत्रकारिता लेने जा रही है।
NDTV समेत चैनलों ने इस मौके का लाभ उठाया है। सुधीर चौधरी और राहुल कंवल के अलावा आशुतोष, जो डिफेंस रिपोर्टिंग के लिए मशहूर हैं, NDTV की तरफ मुड़ गए हैं। NDTV में पूर्व सेबी चेयरमैन यू.के. सिन्हा और ग्रेड इंडिया की दीपाली जैसे बड़े कॉर्पोरेट नाम भी आ गए हैं। यह परिवर्तन दर्शाता है कि मीडिया में अब कॉर्पोरेट और पत्रकारिता की नई साझेदारियाँ बन रही हैं।
‘आज तक’ की गिरती साख के साथ ही यह साफ है कि एक युग का अंत हो रहा है। पत्रकारिता अब TRP आधारित न होकर, विश्लेषण आधारित हो रही है—और इसका नेतृत्व यूट्यूबर्स, स्वतंत्र पत्रकार और डिजिटल क्रिएटर्स कर रहे हैं। ये लोग 15-20 मिनट की वीडियो में मुद्दों की गहराई से पड़ताल करते हैं, जो दर्शकों को कहीं ज़्यादा सूझबूझ और संतुलन के साथ समझ आती है।
आज जो हाल है ‘आज तक’ का, कल वह ‘अदालत’ जैसे अन्य चैनल और शो का भी हो सकता है। बड़े से मीडिया हाउस वाले फूटे रहेंगे, डिजिटल मीडिया चैनल उठेंगे। अब यह अब रुकने वाला नहीं। आने वाले 5 से 10 साल में यह ट्रेंड और गहरा जाएगा। और इसका शुरूआत भी हो चुकी हैं—’आज तक’ से।
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