ईंधन की कीमतों में वृद्धि और उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी से ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि पर गहरा असर

नई दिल्ली, 8अप्रैल, 2025— पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हालिया वृद्धि और उत्पाद शुल्क में ₹2 प्रति लीटर की बढ़ोतरी ने देश के ग्रामीण क्षेत्रों में चिंता बढ़ा दी है। खासकर किसानों और कृषि श्रमिकों के लिए यह बोझ लगातार भारी होता जा रहा है।
डीजल, जो भारतीय कृषि की रीढ़ है, ट्रैक्टरों, सिंचाई पंपों और थ्रेशिंग मशीनों को चलाने में प्रयोग होता है। इसकी कीमतों में तेजी से वृद्धि ने खेती की लागत को असहनीय बना दिया है।
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में किसानों का कहना है कि फसल की कटाई और बुवाई में इस्तेमाल होने वाली मशीनरी के खर्च में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। ट्रैक्टर किराए में 20% तक की वृद्धि हुई है, जबकि डीजल सिंचाई पर प्रति एकड़ ₹1,500 से ₹2,000 तक का अतिरिक्त खर्च आ रहा है।
डीजल इतना महंगा हो गया है कि अब फसल से कमाई कम और खर्च ज्यादा हो गया है,” उत्तर प्रदेश के किसान रमेश यादव ने कहा। “सरकार जब MSP बढ़ाती है, तो डीजल की कीमतें उस लाभ को खत्म कर देती हैं।”
पिछले चार वर्षों में कुछ राज्यों में डीजल की कीमतों में लगभग 45% की वृद्धि देखी गई है, जिससे गेहूं जैसी फसलों की प्रति एकड़ डीजल लागत में लगभग 30% इजाफा हुआ है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव
खेती के अलावा, इसका असर ग्रामीण आपूर्ति श्रृंखला पर भी पड़ा है। मंडियों तक फसल पहुंचाना अब महंगा हो गया है, जिससे ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ रहे हैं।
“सब्ज़ियों को मंडी तक पहुंचाने का किराया दोगुना हो गया है,” मध्य प्रदेश के एक ट्रांसपोर्टर ने कहा। “या तो हम घाटा सहें या मालभाड़ा बढ़ाएं — दोनों में नुकसान जनता का ही है।”
सरकारी प्रयास और प्रतिक्रिया
सरकार ने हाल ही में उर्वरक सब्सिडी को बढ़ाकर ₹2.15 लाख करोड़ कर दिया है, ताकि किसानों को कुछ राहत मिल सके। हालांकि कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम केवल आंशिक समाधान है।
“ईंधन आधुनिक कृषि का प्रमुख हिस्सा है,” कृषि अर्थशास्त्री प्रोफेसर अनिल तिवारी ने कहा। “जब तक डीजल की कीमतें काबू में नहीं आतीं, किसानों की मुश्किलें कम नहीं होंगी।”
भविष्य की राह
खरीफ सीजन नजदीक है और किसान मांग कर रहे हैं कि सरकार उत्पाद शुल्क में वृद्धि को वापस ले या डीजल पर सीधे सब्सिडी दे। अन्यथा, ईंधन की बढ़ती कीमतें न केवल किसानों की आमदनी को नुकसान पहुँचाएंगी , बल्कि देश की आर्थिक वृद्धि की गति को भी धीमा कर देंगी।
कोविड महामारी के बाद भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है, ऐसे में कृषि क्षेत्र पर पड़ रहे इस दबाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह समय है जब सरकार को संतुलित नीति अपनानी चाहिए, जो आर्थिक लक्ष्यों के साथ-साथ किसान कल्याण को भी प्राथमिकता दे ।

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