असम में बड़ा राजनीतिक धमाका: AIUDF विधायक अमीनुल इस्लाम गिरफ्तार, पहलगाम आतंकी हमले पर पाक समर्थक बयान से मचा बवाल!

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गुवाहाटी, 25 अप्रैल — असम की राजनीति में उस वक्त भूचाल आ गया जब AIUDF के धिंग से विधायक अमीनुल इस्लाम को 24 अप्रैल की शाम को गिरफ्तार कर लिया गया। यह गिरफ्तारी एक वायरल वीडियो के बाद हुई, जिसमें उन्होंने 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर कथित रूप से पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए बयान दिया।

इस बयान ने जैसे पूरे असम में आग की तरह माहौल गर्मा दिया। वीडियो के सामने आते ही प्रशासन हरकत में आ गया और नागांव पुलिस ने तुरंत भारतीय दंड संहिता की कई गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज कर ली।

  • धारा 152: सार्वजनिक अशांति को बढ़ावा देना

  • धारा 196: बिना सरकारी स्वीकृति के विधिविरुद्ध कृत्य

  • धारा 113(3): दंगा भड़काने की साजिश

  • धारा 352: हमला

  • धारा 353: सरकारी कर्मचारी के कार्य में बाधा डालना

डीजीपी कार्यालय ने पुष्टि की कि विधायक को “प्रक्रिया के अनुसार” गिरफ्तार किया गया है और उन्हें अदालत में पेश किया जाएगा।

असम के मुख्यमंत्रा हिमंत बिस्वा सरमा ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा:

“यह वीडियो स्पष्ट रूप से दिखाता है कि विधायक पाकिस्तान की भूमिका को सही ठहराते नजर आते हैं। यह असम की गंगा-जमुनी तहज़ीब और सांप्रदायिक सौहार्द पर सीधा हमला है। मैंने तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए थे और पुलिस ने उसी के अनुरूप कार्रवाई की है।”

उन्होंने यह भी कहा कि राज्य की एकता, अखंडता और सामाजिक ताना-बाना को बिगाड़ने की इजाज़त किसी को नहीं दी जाएगी, चाहे वह कोई भी हो।

AIUDF ने विधायक की गिरफ्तारी को “राजनीतिक साजिश” बताते हुए तीखा विरोध जताया है। पार्टी प्रवक्ताओं का कहना है कि वीडियो को संपादित कर पेश किया गया है और पूरे वीडियो को सार्वजनिक करने की मांग की है।

“हम मांग करते हैं कि पूरा वीडियो जनता के सामने लाया जाए ताकि साफ हो सके कि अमीनुल इस्लाम ने वास्तव में क्या कहा,” — AIUDF प्रवक्ता।

राजनीतिक गलियारों में यह बहस शुरू हो गई है कि क्या यह गिरफ्तारी राजनीतिक दबाव का परिणाम है या फिर यह एक निर्णायक कार्रवाई है जो राज्य की शांति और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी थी।

जहां एक ओर सरकार इसे “देशद्रोही मानसिकता के खिलाफ सख्त संदेश” बता रही है, वहीं विपक्ष इसे “अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला” कह रहा है। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने यह तो स्पष्ट कर दिया है कि देशद्रोह जैसे संवेदनशील मामलों पर अब कोई ढील नहीं मिलने वाली — चाहे वो कोई भी राजनीतिक चेहरा क्यों न हो।

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