अपने ही देश में हिंदुओं पर अत्याचार: क्या ब्राह्मण होना अब अपराध है?

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शिवमोग्गा, बीदर और धारवाड़—कर्नाटक के इन तीन ज़िलों से हाल ही में जो घटनाएँ सामने आईं, वे केवल शर्मनाक नहीं, बल्कि स्वतंत्र भारत की आत्मा पर एक क्रूर तमाचा हैं। कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (CET) परीक्षा में भाग लेने आए ब्राह्मण छात्रों को उनके जनेऊ—वह पवित्र यज्ञोपवीत—जो उनके धर्म, संस्कृति और आत्मगौरव का प्रतीक है, उसे जबरन उतारने के लिए मजबूर किया गया। कुछ छात्रों ने रोते हुए उसका त्याग कर दिया, तो कुछ ने परीक्षा ही छोड़ दी। क्या यह है धर्मनिरपेक्षता का असली चेहरा?

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को इन घटनाओं की निंदा करने में कई दिन लग गए। क्या यही तत्परता वे किसी और धर्म के साथ इस प्रकार की घटना होती तो दिखाते?  सवाल यह है कि अब क्या  भारत में बहुसंख्यक हिंदू समुदाय को अपनी धार्मिक पहचान छुपाकर जीना होगा? जब मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने की अनुमति को लेकर कांग्रेस पार्टी सड़कों पर उतर आई थी, तब ब्राह्मण छात्रों की जनेऊ की रक्षा के लिए वह खामोश क्यों रही?

प्रशासन का दावा है कि परीक्षा हॉल में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की रोकथाम के लिए “मेटल ऑब्जेक्ट्स” पर प्रतिबंध लगाया गया था। परंतु जनेऊ—जो कि केवल एक सूती धागा होता है—को “मेटल ऑब्जेक्ट” समझ लेना न केवल अज्ञानता है, बल्कि जानबूझकर किया गया अपमान है।

शुचिव्रत कुलकर्णी नामक छात्र ने परीक्षा केंद्र में प्रवेश से इनकार कर दिया, क्योंकि उससे कहा गया कि वह अपनी जनेऊ हटाए। उसने आत्मसम्मान को चुना और परीक्षा त्याग दी। आज उस छात्र के साथ पूरा देश खड़ा है—पर सवाल यह है कि क्या यह सब रोका नहीं जा सकता था?

वामपंथी मानसिकता और कथित सेक्युलरिज़्म के नाम पर भारत में एक वर्ग विशेष—ब्राह्मणों—को लगातार निशाना  बनाता  जा रहा है। इतिहास में उनके योगदान को मिटाया जा रहा है, उनके प्रतीकों का मज़ाक उड़ाया जा रहा है और अब उनके धार्मिक आचरण को “नियमों का उल्लंघन” कहकर रोका जा रहा है।

यही वर्ग अगर अपने अधिकारों की बात करे, तो उन्हें ‘सामंतवादी’ या ‘जातिवादी’ कहकर चुप कराया जाता है। यह दोहरा मापदंड आखिर कब तक?

डॉ. शंकर गुहा द्वारकानाथ ने स्वयं कांग्रेस से पूछा कि हिजाब विवाद पर जैसी आक्रामक प्रतिक्रिया दी गई थी, वैसी संवेदनशीलता ब्राह्मणों के लिए क्यों नहीं दिखाई गई? क्या कांग्रेस केवल एक समुदाय की हितैषी बनकर रह गई है?

ब्राह्मण समुदाय का यह विरोध केवल जनेऊ के अपमान का नहीं है, यह अपने आत्मसम्मान की लड़ाई है। यह उन लाखों हिंदुओं की आवाज़ है जो अपने ही देश में अपमानित, उपेक्षित और कलंकित महसूस कर रहे हैं।

भारत यदि सच में एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, तो प्रत्येक धर्म के प्रतीकों और आस्थाओं को समान सम्मान मिलना चाहिए। जनेऊ का अपमान केवल ब्राह्मणों का नहीं, पूरे सनातन धर्म का अपमान है। यह समय है कि सरकारें और समाज इस तरह के घटनाओं को गंभीरता से लें।

हमें यह तय करना होगा—क्या हम अपने ही देश में हिंदू होकर अपमानित होते रहेंगे, या आत्मगौरव से खड़े होकर अपने धर्म और परंपराओं की रक्षा करेंगे?

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