चूहों पर सफल प्रयोग के बाद रिसर्चरों की जिज्ञासा है कि क्या अंतरिक्ष में इंसान के बच्चे पैदा हो सकेंगे. और अगर ऐसा हुआ तो क्या अंतरिक्ष के शून्य गुरुत्व में पैदा हुए बच्चों का विकास धरती पर पैदा हुए बच्चों से अलग होगा.
रिसर्चरों ने बताया कि एक प्रयोग के लिए पहले उन्होंने चूहे के शुक्राणु को धरती पर ही ठंड में जमा कर सुखाया और फिर उसे अंतरिक्ष स्टेशन में भेज दिया. अंतरिक्ष में नौ महीने बिताने के बाद जब उन शुक्राणुओं को वापस धरती पर लाया गया तो उनका इस्तेमाल कर धरती पर स्वस्थ चूहे पैदा किये जा सके. इस प्रयोग के बाद वैज्ञानिक यह पता लगाना चाहते हैं कि क्या मानव का शुक्राणु भी ऐसा करने के योग्य होगा. वे यह भी जानना चाहेंगे कि क्या इंसान अंतरिक्ष में ही बच्चे पैदा कर सकेगा और क्या अंतरिक्ष के शून्य गुरुत्व में पैदा हुए बच्चों का विकास धरती पर पैदा हुए बच्चों से अलग होगा. नासा और अन्य वैश्विक अंतरिक्ष एजेंसियों ने 2030 के दशक तक मानव को मंगल ग्रह पर भेजने का लक्ष्य रखा है. विशेषज्ञ कहते हैं कि लाल ग्रह पर मानव के अस्तित्व को बरकरार रखने के लिए जो सबसे जरूरी बात है उसे अब तक नजरअंदाज किया गया है. वह बात यही है कि केवल इंसान को भेज पाना काफी नहीं होगा बल्कि वहां उसकी संतानें भी पैदा होनी चाहिए. अंतरिक्ष से वापस लाये गये चूहे के शुक्राणु का विश्लेषण करते हुए प्रमुख रिसर्चर जापान की यामानाशी यूनिवर्सिटी के तेरुहीको वाकायामा ने पाया कि उस “डीएनए में थोड़ा ज्यादा नुकसान हुआ.” अंतरिक्ष में हर दिन उसे धरती के मुकाबले औसतन 100 गुना ज्यादा कठोर विकिरण झेलना पड़ रहा था. लेकिन धरती पर स्वस्थ चूहे पैदा होने से ये निष्कर्ष निकला कि “डीएनए को हुए नुकसान की निषेचन के बाद भ्रूण बनने पर भरपाई हो गयी.”
लेकिन जब रिसर्चरों ने मादा चूहों के प्रजनन तंत्र पर अंतरिक्ष में पड़ने वाले असर पर शोध किया तो पाया कि मादा अंडाशयों पर विकिरण का भारी असर पड़ता है और इसलिए गहरे अंतरिक्ष की यात्रा पर जाने वाली “महिला अंतरिक्षयात्रियों में भी समय से पहले ही अंडाशय बेकार हो सकते हैं.” फिलहाल नासा में ट्रेनिंग कर रहे लोगों में आधी महिलाएं हैं. इसलिए भी यह जानना जरूरी है कि अंतरिक्ष में जाने पर उनकी सेहत पर कैसा असर पड़ेगा. इसके बारे में पता चलने पर ही धरती के अलावा किसी और ग्रह पर मानव बस्तियां बसाने को लेकर चल रही तमाम योजनाओं को मूर्त रूप दे पाना संभव होगा.
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