“हम कूड़ादान नहीं हैं”: इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस यशवंत वर्मा के ट्रांसफर पर जताई नाराज़गी

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,22 मार्च।
हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के बाद, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित करने का फैसला लिया गया। इस फैसले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “हम कूड़ादान नहीं हैं कि हर संदिग्ध और विवादित व्यक्ति को हमारे पास भेज दिया जाए।”

कुछ दिन पहले दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले में आग लग गई थी। जब दमकल विभाग ने आग पर काबू पाने के बाद जांच की, तो बंगले के कई कमरों में भारी मात्रा में नकदी पाई गई। इस घटना के बाद पूरे देश में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे। लेकिन जिस तरह से इस मामले को निपटाया गया, उससे न्यायिक व्यवस्था की पारदर्शिता और जवाबदेही पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई।

इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने कोलेजियम के फैसले की तीखी आलोचना की है। उनका कहना है कि यह परंपरा बनती जा रही है कि जब भी किसी जज पर गंभीर आरोप लगते हैं, तो उसे इलाहाबाद हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया जाता है। बार एसोसिएशन के अनुसार, यह न केवल हाई कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाता है बल्कि न्यायपालिका की निष्पक्षता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।

इस घटना ने कोलेजियम सिस्टम की खामियों को फिर से उजागर कर दिया है। बिना किसी जांच या ठोस कार्रवाई के, सिर्फ एक स्थान से दूसरे स्थान पर जजों को भेजना कोई समाधान नहीं है। यह सवाल उठता है कि क्या न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही नाम की कोई चीज़ बची भी है या नहीं? अगर यही मामला किसी आम नागरिक के साथ हुआ होता, तो क्या उसे इतनी ही सहजता से बख्शा जाता?

न्यायपालिका पर लोगों का विश्वास तभी बना रह सकता है जब उसमें पारदर्शिता और जवाबदेही हो। जस्टिस यशवंत वर्मा का स्थानांतरण कोई समाधान नहीं है, बल्कि इससे न्यायपालिका की कार्यप्रणाली पर और भी संदेह पैदा होता है। इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की प्रतिक्रिया बिल्कुल उचित है, क्योंकि किसी विवादित व्यक्ति को एक अदालत से हटाकर दूसरी अदालत में भेजना न्यायिक सुधार नहीं बल्कि समस्या को टालने का एक तरीका भर है। भारतीय न्यायपालिका को अब इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, ताकि न्याय प्रणाली की साख बनी रहे और जनता का भरोसा कायम रहे।

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