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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,7 अप्रैल। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत 26 अप्रैल को नई दिल्ली में स्वामी विज्ञानानंद द्वारा लिखित बहुप्रतीक्षित पुस्तक ‘द हिन्दू मेनिफेस्टो’ का औपचारिक विमोचन करेंगे। यह पुस्तक न केवल एक बौद्धिक दस्तावेज है, बल्कि इसे हिंदू सभ्यता के नवजागरण का खाका भी माना जा रहा है।
‘द हिन्दू मेनिफेस्टो’ को लेखक ने वेद, रामायण, महाभारत, अर्थशास्त्र और शुक्रनीतिसार जैसे ग्रंथों से प्रेरणा लेकर तैयार किया है। इसका उद्देश्य एक ऐसा सामाजिक मॉडल प्रस्तुत करना है जो न्यायसंगत, समृद्ध और समरस समाज की स्थापना में सहायक हो।
पुस्तक में वर्णित आठ ‘सूत्र’ को लेखक ने एक मजबूत राष्ट्र और समाज की आधारशिला बताया है। पहले चार सूत्रों में आर्थिक समृद्धि, राष्ट्रीय सुरक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और उत्तरदायी लोकतंत्र पर बल दिया गया है, जबकि शेष चार सूत्र संस्कृति और अध्यात्म से जुड़े हैं — महिलाओं के सम्मान, सामाजिक समरसता, पर्यावरणीय संतुलन और मातृभूमि के प्रति भक्ति को केन्द्र में रखते हैं।
पुस्तक में रामराज्य की आदर्श शासन व्यवस्था को प्रेरणा मानते हुए नैतिक प्रशासन, समान विकास, और नारी सशक्तिकरण की बात की गई है। साथ ही प्रकृति को पूजनीय मानते हुए पर्यावरण संरक्षण का आह्वान किया गया है।
स्वामी विज्ञानानंद ने समाज में वर्ण और जाति जैसी अवधारणाओं को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करने और समावेशिता को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता जताई है। उनका मानना है कि हिंदू दर्शन में सामाजिक एकता और वैश्विक कल्याण की गहन शक्ति निहित है, जिसे फिर से जाग्रत करने की जरूरत है।
स्वामी विज्ञानानंद न केवल एक सन्यासी हैं, बल्कि वे विश्व हिन्दू कांग्रेस और विश्व हिन्दू आर्थिक मंच जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों के माध्यम से हिंदू मूल्यों और वैश्विक नेटवर्किंग को नई दिशा दे रहे हैं। इस पुस्तक के माध्यम से वे प्राचीन ज्ञान और आधुनिक शासन व्यवस्था का संगम प्रस्तुत कर रहे हैं।
‘द हिन्दू मेनिफेस्टो’ उन नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं, आध्यात्मिक गुरुओं और युवाओं के लिए विशेष महत्व रखती है जो हिंदू दृष्टिकोण से प्रेरित राष्ट्रीय पुनर्जागरण में अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं।
संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा इस पुस्तक का विमोचन यह दर्शाता है कि ‘द हिन्दू मेनिफेस्टो’ केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि संस्कृति और राष्ट्र निर्माण को लेकर एक वैचारिक आंदोलन की शुरुआत है। ऐसे समय में जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी पहचान को लेकर सजग है, यह पुस्तक हिंदू सभ्यता की पुनर्स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
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