भारत में महिला सशक्तिकरण: एक व्यापक सरकारी दृष्टिकोण

भारत में महिला सशक्तिकरण सरकारी नीति की प्राथमिकताओं में से एक है, जो लिंग समानता और महिलाओं की समाज में सक्रिय भागीदारी की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें विभिन्न योजनाओं और पहलों को लागू कर रही हैं। इन पहलों का उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें समाज में समान अवसर प्रदान करना है। इस लेख में, महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए प्रमुख कदमों का विश्लेषण किया गया है।

शिक्षा किसी भी समाज के विकास का आधार है, और महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए यह सबसे प्रभावी साधन है। सरकार ने कई योजनाएं लागू की हैं जो महिला साक्षरता दर को बढ़ाने और शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक असमानता को कम करने में सहायक रही हैं।

2015 में शुरू की गई बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) योजना का उद्देश्य घटते हुए बाल लिंग अनुपात को सुधारना और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना था। महिला और बाल विकास मंत्रालय के अनुसार, इस योजना के लागू होने के बाद लड़कियों का स्कूलों में नामांकन बढ़ा है, और उच्च शिक्षा में लड़कियों का ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (GER) 2014-15 में 24.5% से बढ़कर 2018-19 में 27.1% हो गया है।

समग्र शिक्षा अभियान (SSA) 6 से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करता है, जिसमें विशेष ध्यान दिया जाता है कि लड़कियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक समान पहुंच मिले। 2021 तक, SSA ने प्राथमिक विद्यालयों में लड़कियों की संख्या में वृद्धि की, जिससे शिक्षा में लिंग असमानता को कम करने में मदद मिली है।

आर्थिक स्वतंत्रता महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण पहलू है। सरकार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए कई वित्तीय योजनाएं लागू की हैं।

2015 में शुरू की गई मुद्रा लोन योजना छोटे व्यवसायों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। यह योजना ₹50,000 से लेकर ₹10 लाख तक का ऋण प्रदान करती है। मार्च 2021 तक, इस योजना के तहत 28 करोड़ से अधिक ऋण वितरित किए जा चुके हैं, जिनमें से एक महत्वपूर्ण हिस्सा महिला उद्यमियों को मिला है।

यह योजना महिलाओं को बिना किसी संपार्श्विक (Collateral-Free Loans) के व्यवसाय शुरू करने और उसे विस्तारित करने की सुविधा देती है। इस योजना ने हजारों महिलाओं को आर्थिक संसाधनों तक पहुंच दिलाकर उनकी वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ किया है।

2016 में शुरू की गई स्टैंडअप इंडिया योजना महिलाओं, अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों को उद्यमिता में भाग लेने के लिए प्रेरित करती है। इस योजना के तहत ₹10 लाख से लेकर ₹1 करोड़ तक का ऋण दिया जाता है। मार्च 2021 तक, इस योजना के तहत लगभग 1.14 लाख ऋण स्वीकृत किए गए थे, जिससे महिलाओं की आर्थिक भागीदारी बढ़ी है।

महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि व्यावसायिक और कौशल प्रशिक्षण भी आवश्यक है। सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं को कौशल प्रदान करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।

यह योजना विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों की महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण, वित्तीय अनुदान और मार्गदर्शन प्रदान करती है। इस योजना के तहत कई महिलाओं ने अपना व्यवसाय स्थापित किया है और आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया है।

इस मिशन के तहत महिलाओं को विभिन्न उद्योगों में रोजगार के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। 2021 तक, कुल प्रशिक्षित लाभार्थियों में से 34% महिलाएँ थीं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार महिलाओं की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।

राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सरकार कई नीतियां लागू कर रही है।

  • पंचायती राज प्रणाली में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण दिया गया है, जिससे लाखों महिलाएँ ग्राम प्रधान, जिला परिषद सदस्य और अन्य राजनीतिक पदों पर नियुक्त हो रही हैं।
  • संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण देने का विधेयक (महिला आरक्षण बिल) भी चर्चा में है, जिससे महिलाओं को उच्च स्तर की राजनीति में प्रतिनिधित्व मिलेगा।

महिला सुरक्षा के लिए सरकार ने निर्भया फंड की स्थापना की, जिसका उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकना और उन्हें सुरक्षित माहौल प्रदान करना है। इस फंड के तहत महिला हेल्पलाइन, सेफ सिटी प्रोजेक्ट और वन-स्टॉप सेंटर जैसी कई योजनाएं शुरू की गई हैं।

भारत सरकार ने महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता, कौशल विकास और राजनीतिक भागीदारी के क्षेत्र में कई योजनाएं लागू की हैं। इन पहलों ने महिलाओं को समाज में अधिक प्रभावी भूमिका निभाने में मदद की है। हालांकि, अभी भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जैसे कि सामाजिक रूढ़ियाँ, कार्यस्थल पर लैंगिक असमानता और महिलाओं की सुरक्षा।

सकारात्मक पहल और सशक्तिकरण के प्रयासों को जारी रखते हुए, भारत महिलाओं के लिए एक समान और सुरक्षित भविष्य की ओर बढ़ रहा है। महिला सशक्तिकरण केवल सरकारी नीतियों का विषय नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक परिवर्तन का भी हिस्सा है, जिसमें प्रत्येक नागरिक की भागीदारी आवश्यक है।

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