नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा में हो रही देरी को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं ज़ोरों पर हैं। पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल आधिकारिक रूप से दो साल पहले समाप्त हो चुका है, लेकिन उनकी अगुवाई में पार्टी न केवल संगठित बनी हुई है, बल्कि चुनावी जीत भी हासिल कर रही है। ऐसे में यह देरी पार्टी की रणनीतिक सोच को दर्शाती है, न कि किसी आंतरिक भ्रम या संकट को।
भाजपा के इतिहास में यह पहली बार है जब अध्यक्ष पद को लेकर इतनी लंबी प्रतीक्षा देखने को मिल रही है। बावजूद इसके, पार्टी के संगठनात्मक ढांचे और चुनावी मशीनरी में कोई सुस्ती नहीं आई है। नड्डा के नेतृत्व में पार्टी ने कई राज्यों में चुनावी सफलता पाई है और संगठन की गति भी बरकरार है।
भाजपा की परंपरा रही है कि अध्यक्ष पद के लिए आम सहमति से नाम तय किया जाता है, न कि चुनावी मुकाबलों के जरिए। यह तरीका गुटबाज़ी से बचाता है और पार्टी की एकता को बनाए रखता है। यही कारण है कि पार्टी प्रतीकवाद से अधिक कार्यक्षमता और स्थायित्व को प्राथमिकता देती है।
लोकसभा चुनाव और कई अहम राज्य चुनावों के चलते पार्टी ने नेतृत्व में बदलाव की बजाय संगठनात्मक निरंतरता को तरजीह दी है। देशभर में पार्टी की आधी से अधिक राज्य इकाइयों में अब भी आंतरिक चुनाव बाकी हैं, जिन्हें पूरा किए बिना राष्ट्रीय नेतृत्व में परिवर्तन असमय माना जा रहा है।
जहां अन्य दलों में शीर्ष पदों को लेकर खींचतान आम बात है, वहीं भाजपा में न तो सार्वजनिक लॉबिंग दिख रही है और न ही किसी तरह की शक्ति संघर्ष की खबरें सामने आ रही हैं। यह भाजपा की अनुशासित कार्यशैली और सामूहिक निर्णय प्रक्रिया का प्रमाण है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की पृष्ठभूमि में भूमिका भी विचारधारा के संतुलन को बनाए रखने में सहयोगी बनी हुई है।
पार्टी सूत्रों की मानें तो अगला अध्यक्ष ऐसा चेहरा हो सकता है जो भाजपा की भावी रणनीति को प्रतिबिंबित करे—संभव है कि वह दक्षिण भारत से हो या फिर पहली बार महिला अध्यक्ष बने। 2029 के आम चुनाव, जनगणना के बाद होने वाली परिसीमन प्रक्रिया और महिलाओं के आरक्षण कानून के कार्यान्वयन जैसे मुद्दों को देखते हुए पार्टी नेतृत्व अब आने वाले दशकों की रूपरेखा तय करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
बीजेपी में अध्यक्ष पद को लेकर हो रही देरी को भ्रम या अनिश्चितता के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। यह एक सुव्यवस्थित और रणनीतिक निर्णय प्रक्रिया है, जिसमें समय और परिस्थितियों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है।
आज जब राजनीतिक दलों में अक्सर फैसले जल्दबाज़ी में होते हैं, बीजेपी यह संदेश दे रही है कि नेतृत्व परिवर्तन भी एक योजनाबद्ध प्रक्रिया हो सकती है—जहाँ headlines से ज़्यादा महत्त्व timing और तैयारी का होता है।
Comments are closed.