पूज्य सद्गुरुदेव आशिषवचनम्
।। श्री: कृपा ।।
पूज्य “सद्गुरुदेव” जी ने कहा – गुरु हमारी आध्यात्मिक मांग की पूर्ति है, उसकी कृपा से अंतस में समाहित शुभता, दिव्यता और भगवदीय सामर्थ्य का उत्थान भी सहज संभव है…! गुरु कृपा से होती है – साधक को अंतर अनुभूति। गुरु का जीवन में उतना ही महत्व है, जितना माता-पिता का, गुरु ही ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग दिखाते हैं। अमरत्व की प्राप्ति गुरु कृपा के बिना संभव नही। जब गुरु संकल्प करते हैं कि शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति हो, तभी सही अर्थ में शिष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है। इसी को गुरुकृपा कहा जाता है। और, ऐसा केवल विचार ही गुरु के मन में आना पर्याप्त है। बिना गुरु के मार्गदर्शन के मनुष्य सही सोच एवं सही दिशा में जाने में सफल नहीं हो सकता। बिना गुरु का जीवन महत्वहीन होता है। पुरातन काल में गुरु आश्रम या गुरुकुल में शिक्षा देने के साथ-साथ चरित्र और संस्कारों का निर्माण किया जाता था। गुरुकुल से दीक्षित होकर कई चक्रवर्ती राजा, योद्धा, विद्वान हुए, जिन्होंने गुरुकृपा का महत्व समझा और समझाया। भारतीय संस्कृति में अनादिकाल से गुरु की महिमा बहुत ऊंची रही है। वेद, दर्शन, गीता, रामायण, गुरुग्रंथ साहेब आदि सभी धर्मग्रंथों में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा माना गया है। मनुष्य को यदि समर्थ गुरु न मिले तो उसका जीवन पशुओं से भी बदतर हो सकता है और समर्थ ‘सद्गुरु’ मिल जायें तो वह महान बन सकता है। अत: मानव के लिए ‘गुरु सत्ता’ की अति आवश्यकता है। हमारे यहां सिख धर्म का तो आधार और लक्ष्य ही गुरु हैं…।
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पूज्य “आचार्यश्री” जी ने कहा – गुरु में जिसका दृढ़ विश्वास है, जिसका चित्त गुरुचरणों में ही अटल रहता है एवं गुरु चरणों में जो निश्चलता रखता है, वही सच्चा परमार्थी शिष्य है। वही गुरु-उपदेश से एक क्षण में परमार्थ का पात्र हो जाता है। जिस प्रकार एक दीपक से दूसरा दीपक जलाने पर वह भी उसी की तरह हो जाता है, ठीक उसी प्रकार निश्चल वृत्ति के साधक को गुरु प्राप्त होते ही वह तत्काल तद्रूप हो जाता है। सद्गुरु’ के सान्निध्य में जाने से जीवन में दिव्य शक्ति आ जाती है, जीवन की दशा और दिशा बदल जाती है। ‘सद्गुरु’ सबसे पहले हमारी आंखों पर बंधी हुई अज्ञानता की पट्टी खोलते हैं, फिर अपने-पराये, सत्य-असत्य, आत्म-अनात्म आदि का ज्ञान कराते हैं। “आचार्यश्री” जी कहा करते हैं कि जितेन्द्रिय व्यक्ति ही परमात्मा को प्राप्त करते हैं। परमात्मा के प्रति परम प्रेम और गहन अभीप्सा के पश्चात इन्द्रियों पर विजय पाना अध्यात्म की दिशा में अगला कदम है। बिना इन्द्रियों पर विजय पाए कोई एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता। इन्द्रियों पर विजय न पाने पर आगे सिर्फ पतन ही पतन है। इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण एक परम तप है। इससे बड़ा तप दूसरा कोई नहीं है। दो बातों का निरंतर ध्यान रखना होगा। सारे कार्य स्वविवेक के प्रकाश में करें, ना कि इन्द्रियों की माँग पर….। भगवान ने आपको विवेक दिया है उसका प्रयोग करें। इन्द्रियों की माँग मत मानो। इन्द्रियाँ जब जो मांगती हैं वह उन्हें दृढ़ निश्चय पूर्वक मत दो। उन्हें उनकी माँग से वंचित करो। यह सबसे बड़ी तपस्या है। इन्द्रियों का विरोध करना ही होगा। दृढ़ निश्चय कर के निरंतर प्रयास से मन को परमेश्वर के चिंतन में लगाएं। विषय-वासनाओं से मन को हटाकर भगवान के ध्यान में लगाओ। जब भी विषय-वासनाओं के विचार आयें तब अपने इष्ट देवता से प्रार्थना करें, गुरुमंत्र का जाप करें। सात्विक भोजन लें, कुसंग का त्याग करें, सत्संग करें और शुद्ध और सात्विक वातावरण में रहें। निश्चित रूप से आप भी महावीर बनेंगे….।
पूज्य “आचार्यश्री” जी कहा करते हैं कि जब गुरु कृपा से साधक को अंतर अनुभूति होती है, तब वह ईश्वर के परम प्रकाश रूप का दर्शन करता है। ईश्वर प्रकाश रूप में हमारे भीतर ही हैं और उस प्रभु का दिव्य दर्शन हमें अपने भीतर ही होता है। अगर आप भी उस परमात्मा को जानना चाहते है तो आप को भी ऐसा ही मार्गदर्शक चाहिए। यह सर्वविदित है कि सूर्य प्रकाशमय तत्व और चंद्रमा भी प्रकाशमय है। किंतु, चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है। वह तो सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होता रहता है। ऐसे ही गुरु सूर्य के समान हैं और शिष्य चंद्रमा के समान। गुरु रूपी सूर्य के प्रकाश में तप कर ही शिष्य दुनिया को शीतलता प्रदान करने वाला ज्ञान आगे फैलाता है। गुरु कृपा का विशेष अनुदान पाने का एक मात्र रास्ता होता है – गुरुध्यान, गुरुभक्ति, गुरुसेवा, गुरुकार्य एवं गुरुआज्ञा पालन। और, जब यह संकल्पित हो कर किया जाता है तो शिष्य की भक्ति, निष्ठा की शक्ति में बदल जाती है एवं पूर्णाहुति के साथ ही उसे मिलता है – गुरु का विशेष अनुदान, गुरु का विशेष आशीर्वाद जो कि शिष्य के जीवन को दिव्यता में बदल देता है। इससे शिष्य का आत्मिक कायाकल्प तो हो ही जाता है साथ ही उसे भौतिक जीवन की परेशानियों से भी मुक्ति मिल जाती है एवं और भी बहुत कुछ, जो हमारी कल्पनाओं से परे है। अतः आप स्वयं भी अपने जीवन में गुरु कृपा का अनुभव कर सकते हैं…।
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