कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
ढाका: भारतीय खुफिया एजेंसियों द्वारा पहलगाम नरसंहार का खुलासा कर पाक-आधारित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) की संलिप्तता सामने लाए जाने के महज कुछ घंटों के भीतर ही बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के लीगल एडवाइज़र डॉ. असिफ नज़रुल ने LeT के बांग्लादेश मॉड्यूल प्रमुख हरून इज़हार से अपने मंत्रालय के दफ़्तर में मुलाकात की। यह हाई-प्रोफ़ाइल बातचीत क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक बड़ी चेतावनी के रूप में देखी जा रही है।
घटना की पृष्ठभूमि में पहलगाम आतंकी हमले की भयावहता उभरती है, जिसमें 26 भारतीय पर्यटकों की बेरहमी से हत्या की गई थी। इस नरसंहार को अंजाम देने वाले मुख्य सूत्रधारों की पहचान के लिए भारतीय एजेंसियाँ पाकिस्तान स्थित LeT की विंग “द रेजिस्टेंस फ्रंट” (TRF) तक पहुँची थीं। इतने भयानक हमले की गूंज अभी शांत भी नहीं हुई थी कि नज़रुल-इज़हार की यह मुलाकात सुरक्षा विशेषज्ञों के लिए चिंता का नया विषय बन गई।
गहन जानकारी रखने वाले बांग्लादेशी सैन्य खुफिया स्रोतों के अनुसार, इज़हार का दफ़्तर में प्रवेश और नज़रुल का उन्हें औपचारिक सत्कार स्वाभाविक नहीं माना जा सकता। इज़हार पर बांग्लादेश में 25 से अधिक आतंकवाद विरोधी धाराओं में मुकदमें दर्ज हैं, जिनमें 2009 में भारतीय उच्चायोग पर हमले की साजिश और 2013 में उनके माद्रसे में ग्रेनेड धमाके का मामला प्रमुख है। संयुक्त राज्य अमेरिका की मदद से ली गई खुफिया जानकारी, मुंबई हमलों के दोषी डेविड हेडली के बयान, ने भी उनके आतंकी कनेक्शनों की पोल खोली थी।
इज़हार ने पाकिस्तान में अपने अध्ययनकाल में LeT के उच्च तत्त्वों से गहरे संबंध बनाए। इसी कड़ी में उन्होंने Hefazat-e-Islam नामक आतंकी इस्लामिक संगठन के भीतर “मनहाज़” नामक एक गुप्त गुट का गठन कर रखा था। बांग्लादेश की खुफिया रिपोर्टों के मुताबिक़, इस गुट ने छात्रों को जिहादी विचारधारा के प्रति उकसाया और 30 मार्च, 2024 को इज़हार का एक वीडियो भी सामने आया, जिसमें वह एक समूह को भारत व म्यांमार के खिलाफ जिहाद शुरू करने के लिए प्रेरित करता दिखा है।
सैन्य खुफिया अधिकारी ने पुष्टि की है कि नज़रुल-इज़हार मुलाकात रिकॉर्ड की गई थी, हालाँकि इसका वीडियो या ऑडियो सार्वजनिक नहीं हुआ। अधिकारी ने कहा, बांग्लादेश के “कानून मंत्रालय के भीतर एक आतंकी नेता की मौजूदगी यह संकेत देती है कि राज्य और आतंकी तत्वों के बीच खाई कम होती जा रही है।” इस बयान ने अनगिनत सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या बांग्लादेश की अंतरिम सरकार जानबूझकर LeT की गतिविधियों को वैधता प्रदान कर रही है?
डॉ. असिफ नज़रुल ने मुलाकात से ठीक पहले अपने फेसबुक पोस्ट में भारतीय नेतृत्व, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, पर बिना किसी ठोस सबूत के आरोप मढ़े थे। इस पोस्ट की भाषा में तीखी राजनीतिक कटुता और संवेदनहीनता थी।
पूर्व सूचना मंत्री मोहम्मद आराफ़थ का आरोप है कि अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस की देखरेख में आतंकी कैदियों को रिहा कर उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया जा रहा है। उनके अनुसार, “यूनुस ने न केवल आतंकियों को जेल से बाहर निकाला, बल्कि उनके समर्थकों को काउंटर टेररिज़्म व ट्रांसनेशनल क्राइम यूनिट (CTTC) में भी प्रवेश दिया है।” यदि यह आरोप सत्य है, तो बांग्लादेश अपने देश को एक संवेदनशील उथल-पुथल की ओर धकेल सकता है।
इन तमाम घटनाक्रमों ने दोनों पड़ोसी देशों के बीच पहले से ही तनावपूर्ण कूटनीति को और जटिल कर दिया है। माना जा रहा है कि भारत-ढाका से सफ़ाई-तलब करते हुए, बांग्लादेश में आतंकी असर को देखते हुए अपनी सुरक्षा समीपवर्ती निर्देशों को कड़ा कर सकता है। साथ ही, क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग का भरोसा भी हिल सकता है, जिससे दक्षिण एशिया की सामूहिक स्थिरता पर असर पड़ने का खतरा है।
यद्यपि बैठक की सटीक बातचीत का विवरण सार्वजनिक नहीं हुआ, पर एक बात स्पष्ट है कि नज़रुल-इज़हार मुलाकात ने क्षणभंगुर स्थिरता को झकझोर दिया है। अब यह देखना होगा कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इन आरोपों का खंडन करेगी या व्यापक कूटनीतिक जांच की पहल करेगी। क्षेत्रीय राजनीति के इस मुड़ाव ने न केवल भारतीय सुरक्षा संगठन को, बल्कि समूचे दक्षिण एशिया को सतर्क कर दिया है कि कट्टरपंथ और राजनैतिक सत्ता के बीच की रेखाएं धुंधली होती जा रही हैं।
कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Comments are closed.