अगर सब कुछ सुप्रीम कोर्ट ही करेगा, तो संसद को बंद कर दीजिए”: बीजेपी सांसद की तीखी टिप्पणी से मचा सियासी घमासान

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

नई दिल्ली, 19 अप्रैल 2025 — कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच चल रहे टकराव ने आज एक नया मोड़ ले लिया जब झारखंड के गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट की तीखी आलोचना करते हुए संसद की भूमिका पर सवाल खड़ा कर दिया।

दुबे ने कहा, “अगर सुप्रीम कोर्ट ही सब कुछ तय करेगा, तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।” यह बयान सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया फैसले के बाद आया है जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को दोबारा पारित विधेयकों पर तीन महीने के भीतर हस्ताक्षर करने की समयसीमा तय की गई थी। अदालत ने कहा था कि इससे अधिक देरी “मनमानी और असंवैधानिक” होगी।

दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर “धार्मिक युद्ध भड़काने” का आरोप लगाते हुए चेतावनी दी कि अगर न्यायपालिका की सीमा तय नहीं की गई, तो “अराजकता” फैल सकती है। उन्होंने कहा, “न्यायपालिका कानून नहीं बना सकती, केवल संसद ही कानून बनाने वाली संस्था है। राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं, न कि इसके उलट। सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जा रहा है।”

उनकी यह टिप्पणी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के उस हालिया बयान की प्रतिध्वनि है जिसमें उन्होंने अनुच्छेद 142 को “न्यायपालिका के पास मौजूद परमाणु मिसाइल” करार दिया था और कहा था कि यह लोकतांत्रिक संस्थाओं पर 24×7 निशाना साध रहा है। धनखड़ ने यह भी सवाल उठाया था कि बिना जवाबदेही के न्यायपालिका कैसे कार्यपालिका और विधायिका की भूमिका निभा सकती है।

यह विवाद ऐसे समय पर सामने आया है जब सुप्रीम कोर्ट वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा है कि वह ‘वक्फ-बाय-यूजर’ जैसी विवादास्पद धाराओं और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति जैसी बातों को लागू नहीं करेगी।

यह विवाद तमिलनाडु विधेयकों पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद और तीव्र हुआ है, जिसमें गवर्नर आर.एन. रवि द्वारा 10 विधेयकों को लंबित रखने को असंवैधानिक बताया गया था।जैसे-जैसे यह टकराव गहराता जा रहा है, वैधानिक संस्थाओं के बीच शक्ति संतुलन का भविष्य एक गंभीर बहस का विषय बनता जा रहा है।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

Comments are closed.